Monday, August 24, 2009

ज़िंदगी न जाने कैसे रंग दिखाती है

 ज़िंदगी  भी कैसे रंग दिखाती है,
कभी हसाती है, कभी रुलाती है,
कभी अपनाती है, कभी बेग़ाना बनाती है,
कभी समुंदर की लहरों से लड़ना सिखाती है,
कभी उसमे ही हमारी कश्ती डुबाती है,
ज़िंदगी न जाने कैसे रंग दिखाती है !!!

कभी चेहरे से हसी जाती न थी,
आज उस हंसी  आंखे तरस जाती है,
कभी रोते हुए को हसाते थे हम,
आज खुद ही आंसुयों में डूब जाते हैं हम,
ज़िंदगी न जाने कैसे रंग दिखाती है !!!

कभी ज़िन्दगी में  गुजरने की तमन्ना थी,
आज उस ही ज़िन्दगी से भाग जाने कि तमन्ना है,
कभी दूसरों  को मिटाया करते थे हम,
आज  अपने ही दर्द से मितटे जाते हैं हम,
ज़िंदगी न जाने कैसे रंग दिखाती है !!!

कभी अपने दर्द को अपनी ताकत बनाने थे हम,
आज उसी दर्द से कमज़ोर बनते जा रहे है हम,
कभी वक़्त  के साथ हम भागते थे,
आज उसी वक़्त से हम भागते है,
ज़िंदगी न जाने कैसे रंग दिखाती है !!!
कभी हसाती है, कभी रुलाती है!!!

1 comment:

Neha said...

Nice one.. having great depths. Good going.. :D